Class 9 NCERT Solutions Hindi Chapter 7: Ganeshshankar Vidhyarthi
Ganeshshankar Vidhyarthi Exercise प्रश्न-अभ्यास (मौखिक)
Solution 1
आज धर्म के नाम पर लोगों को भड़काया जा रहा है, उन्हें ठगा जा रहा है और दंगे-फसाद किए जाते हैं और नाना प्रकार के उत्पात किए जाते हैं।
Solution 2
धर्म के नाम पर हो रहे व्यापार को रोकने के लिए दृढ़ विश्वास और विरोधियों के प्रति साहस से काम लेना चाहिए। कुछ लोग धूर्तता से काम लेते हैं, उनसे बचना चाहिए और बुद्धि का प्रयोग करना चाहिए।
Solution 3
लेखक के अनुसार स्वाधीनता आंदोलन का वह दिन सबसे बुरा था जिस दिन स्वाधीनता के क्षेत्र में खिलाफत, मुल्ला मौलवियों और धर्माचार्यों को स्थान दिया जाना आवश्यक समझा गया। इस प्रकार स्वाधीनता आंदोलन ने एक कदम और पीछे कर लिया जिसका फल आज तक भुगतना पड़ रहा है।
Solution 4
साधारण आदमी धर्म के नाम पर उबल पड़ता है, चाहे उसे धर्म के तत्वों का पता न हो क्योंकि उनको यह पता है कि धर्म की रक्षा पर प्राण तक दे देना चाहिए।
Solution 5
धर्म के दो स्पष्ट चिह्न हैं - शुद्ध आचरण और सदाचार धर्म।
Ganeshshankar Vidhyarthi Exercise प्रश्न-अभ्यास (लिखित)
Solution क - 1
चलते-पुरज़े लोग धर्म के नाम पर लोगों को मूर्ख बनाते हैं और अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं, लोगों की शक्तियों और उनके उत्साह का दुरूपयोग करते हैं। उन्हीं मूर्खों के आधार पर वे अपना बड़पन्न और नेतृत्व कायम रखना चाहते हैं। साधारण लोग धर्म का सही अर्थ और उसके तत्वों को समझ नहीं पाते और उनकी इस अज्ञानता का लाभ चालाक लोग उठा लेते हैं। उन्हें आपस में ही लड़ाते रहते हैं।
Solution क - 2
चालाक लोग साधारण आदमी की धर्म के प्रति निष्ठा और अज्ञानता का लाभ उठाते हैं। साधारण आदमी उनके बहकावे में आ जाते हैं। चालाक आदमी उसे जिधर चाहे उसे मोड़ देता है और अपना काम निकाल लेता है। साथ ही उस पर अपना प्रभुत्व भी जमा लेता है। वे लोग उनकी अज्ञानता का लाभ उठाकर उसकी शक्तियों और उत्साहों का शोषण करते हैं।
Solution क - 3
नमाज पढ़ना, शंख बजाना, नाक दबाना यह धर्म नहीं है, शुद्ध आचरण और सदाचार धर्म के लक्षण हैं। पूजा के ढ़ोंग का धर्म आगे नहीं टिक पाएगा। ऐसी पूजा तो ईश्वर को रिश्वत की तरह होती है। बेईमानी करने और दूसरों को दुःख पहुँचाने की आजादी धर्म नहीं है। इस लिए आगे से कोई भ्रष्ट नेता लोगों की धार्मिक भावनाओं से नहीं खेल सकता। आने वाला समय दिखावे वाले धर्म को नहीं टिकने देगा।
Solution क - 4
हमारा देश स्वाधीन है। इसमें अपने-अपने धर्म को अपने ढंग से मनाने की पूरी स्वतंत्रता है। यदि कोई इसमें रोड़ा बनता है या धर्म की आड़ लेकर अपना स्वार्थ सिद्ध करने की कोशिश करते हैं तो वह कार्य देश की स्वाधीनता के विरूद्ध समझा जाएगा।
Solution क - 5
पाश्चात्य देशों में धनी और निर्धन के बीच गहरी खाई है। वहाँ धनी लोग निर्धन को चूसना चाहते हैं। उनसे पूरा काम लेकर ही वह धनी हुए हैं। वे धन का लोभ दिखाकर उन्हें अपने वश में कर लेते हैं और मनमाने तरीके से काम लेते हैं। धनियों के पास पूरी सुविधाएँ होती हैं। कठिन परिश्रम करने के बाद भी गरीबों को झोपड़ियों में जीवन बिताना पड़ता है। इसी के कारण साम्यवाद का जन्म हुआ।
Solution क - 6
जो लोग खुद को धार्मिक कहते हैं परन्तु उनका आचरण, व्यवहार अच्छा नहीं है। उनसे वे लोग अच्छे हैं जो नास्तिक हैं, धर्म को बहुत जटिलता से नहीं मानते परन्तु आचरण और व्यवहार में बहुत अच्छे हैं। दूसरों के सुख-दुख का ख्याल रखते हैं, मदद करते हैं और अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए सीधे सज्जन या अज्ञान लोगों को मूर्ख नहीं बनाते हैं।
Solution ख - 1
चालाक लोग धर्म और ईमान के नाम पर सामान्य लोगों को बहला फुसला कर उनका शोषणकर अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं। वे धर्म के नाम पर दंगे फसाद, लोगों को एक-दूसरे से लड़ाना, हिंसा फैलाना और लोगों की शक्ति का दुरूपयोग करना आदि कई सारे अमानवीय कार्य करते हैं। इस प्रकार धर्म की आड़ में एक व्यापार जैसा चल रहा है। इसे रोकना अतिआवश्यक है। इसके लिए लोगों को धर्म के अर्थ और तत्वों को सही तरह समझाना व उन्हें जागरूक करना आवश्यक है। लोगों को शिक्षित करके साहस और दृढ़ता से धर्म गुरूओं की पोल खोलनी चाहिए।
Solution ख - 2
बुद्धि पर मार' का अर्थ है लोगों की बुद्धि में ऐसे विचार भरना जिससे वे गुमराह हो जाएँ। इससे उनके सोचने समझनी की शक्ति नष्ट हो जाए। लेखक का विचार है कि विदेश में धन की मार है तो भारत में बुद्धि की मार। यहाँ बुद्धि को भ्रमित किया जाता है। जो स्थान ईश्वर और आत्मा का है, वह अपने लिए ले लिया जाता है। फिर इन्हीं नामों अर्थात् धर्म, ईश्वर, ईमान, आत्मा के नाम पर अपने स्वार्थ की सिद्धी के लिए सामान्य लोगों को आपस में लड़ाया जाता है।
Solution ख - 3
हमारा देश स्वाधीन है। इसमें अपने-अपने धर्म को अपने ढंग से मनाने की पूरी स्वतंत्रता है। उसके अनुसार शंख, घंटा बजाना, ज़ोर-ज़ोर से नमाज़ पढ़ना ही केवल धर्म नहीं है। शुद्ध आचरण और सदाचार धर्म के लक्षण हैं।
Solution ख - 4
महात्मा गाँधी अपने जीवन में धर्म को सर्वोच्च स्थान देते थे। धर्म के बिना वे एक कदम भी चलने को तैयार नहीं थे। वे सर्वत्र धर्म का पालन करते थे। उनके धर्म के स्वरूप को समझना आवश्यक है। धर्म से महात्मा गांधी का मतलब, धर्म ऊँचे और उदार तत्वों का ही हुआ करता है। वे धर्म की कट्टरता के विरोधी थे। प्रत्येक व्यक्ति का यह कर्तव्य है कि वह धर्म के स्वरूप को भलि-भाँति समझ ले। वे सत्य और अहिंसा को ही परम धर्म मानते थे।
Solution ख - 5
जन कल्याण हेतु आचरण में शुद्धता अतिआवश्यक है। यदि हम धार्मिक बनेंगे अर्थात् अपना व्यवहार अच्छा, सदाचार पूर्ण रखेंगे तो दूसरों को समझाना भी आसान हो। सबके कल्याण हेतु अपने आचरण को सुधारना इसलिए आवश्यक है क्योंकि जब हम खुद को ही नहीं सुधारेंगे, दूसरों के साथ अपना व्यवहार सही नहीं रखेंगे तब तक दूसरों से क्या आशा रख सकते हैं।
Solution ग - 1
साधारण आदमी धर्म के नाम पर उबल पड़ता है, चाहे उसे धर्म के तत्वों का पता न हो क्योंकि उनको यह पता है कि धर्म की रक्षा पर प्राण तक दे देना चाहिए। धर्म के बारे में अंधविश्वास रखते हैं और इसका फायदा चालाक लोग, स्वार्थी लोग उठा लेते हैं। उनसे अपना स्वार्थ सिद्ध कराते हैं और वे भी उसमें बिना विचारे जुट जाते हैं।
Solution ग - 2
लेखक का विचार है कि विदेश में धन की मार है तो भारत में बुद्धि की मार। भारत में धर्म के कुछ महान लोग साधारण लोगों को भ्रमित कर देते हैं। जो स्थान ईश्वर और आत्मा का है, वह अपने लिए ले लिया जाता है। फिर इन्हीं नामों अर्थात् धर्म, ईश्वर, ईमान, आत्मा के नाम पर अपने स्वार्थ की सिद्धी के लिए सामान्य दुरूपयोग कर शोषण करते हैं। साधारण लोगों को आपस में लड़ाया जाता है।
Solution ग - 3
नमाज पढ़ना, शंख बजाना, नाक दबाना यह धर्म नहीं है, शुद्ध आचरण और सदाचार धर्म के लक्षण हैं। पूजा के ढ़ोंग का धर्म आगे नहीं टिक पाएगा। ऐसी पूजा तो ईश्वर को रिश्वत की तरह होती है। बेईमानी करने और दूसरों को दुःख पहुँचाने की आजादी धर्म नहीं है। इसलिए आने वाले समय में केवल पूजा-पाठ को ही महत्व नहीं दिया जाएगा बल्कि आपके अच्छे व्यवहार को परखा जाएगा और उसे महत्व दिया जाएगा। आने वाला समय दिखावे वाले धर्म को नहीं टिकने देगा।
Solution ग - 4
निम्न पंक्तियों का आशय यह है कि केवल मानने से ईश्वर का अस्तित्व नहीं रहेगा बल्कि यदि सही मायनों में हम उसका अस्तित्व कायम रखना चाहते हैं तो हमें हिंसा छोड़कर मानवता को अपनाना होगा।
Ganeshshankar Vidhyarthi Exercise भाषा अध्ययन
Solution 1
1. सुगम - दुर्गम
2. धर्म - अधर्म
3. ईमान - बेईमान
4. साधारण - असाधारण
5. स्वार्थ - निःस्वार्थ
6. दुरूपयोग - सदुपयोग
7. नियंत्रित - अनियंत्रित
8. स्वाधीनता - पराधीनता
Solution 2
ला |
लाइलाज, लापता |
बिला |
बिलावजह, बिलानागा |
बे |
बेहद, बेकसूर |
बद |
बदनसीब, बदसूरत |
ना |
नासमझ, नादानी |
खुश |
खुशकिस्मत, खुशहाली |
हर |
हररोज, हरदम |
गैर |
गैरकानूनी, गैरहाजिर |
Solution 3
नारी + त्व = नारीत्व
प्रभु + त्व = प्रभुत्व
महत् + त्व = महत्त्व
मनुष्य + त्व = मनुष्यत्व
बंधु + त्व = बंधुत्व
Solution 4
पढ़े - लिखे
लड़ाना - भिड़ाना
दिन - भर
सुख - दुःख
मन - माना
नित्य - प्रति
पूजा - पाठ
स्वार्थ - सिद्धि
भली - भाँति
देश - भर
Solution 5
1. चार बातें सुनकर गम खा जाते हैं फिर भी बदनाम हैं।
2. गाँव के इतिहास में यह घटना अभूतपूर्व न होने पर भी महत्वपूर्ण थी।
3. झूरी इन्हें फूल की छड़ी से भी न छूता था। उसकी टिटकार पर दोनों उड़ने लगते थे। यहाँ मार पड़ी।
4. कुत्ता भी बहुत गरीब जानवर हैं, लेकिन कभी-कभी उसे भी क्रोध आ जाता हैं, किन्तु गधे को कभी क्रोध करते नहीं सुना।
5. उसके चेहरे पर एक स्थायी विषाद स्थायी रूप से छाया रहता हैं। सुख-दुःख, हानि-लाभ, किसी भी दशा में बदलते नहीं देखा।